Sunday, January 25, 2015

Story has not yet begun!


ये अफ़्सानो की दुनियामें कहानी रोज़ बनती है,


कभी हँसती-रुलाती हे, कभी वो बोज़ बनती हे। 



हमारी इस कहानी का अभी आगाज़ बाकी हे,



गज़लमें लफ्ज़ काफी हे मगर आवाज़ बाकी हे।



तुम्हे यूँ आँख के अश्कों में बहकर तैरना आया,


जलाकर उन्ही अश्कों को हमारी सोच बनती हे।



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